
Office Stress : भारत में लगभग 80% कर्मचारी कार्यस्थल के तनाव से जूझ रहे हैं, जो न केवल उनकी सेहत को प्रभावित करता है, बल्कि घर-परिवार पर भी गहरा असर डालता है। अपने दिन की शुरुआत जिस उम्मीद से की थी, वह शाम ढलते-ढलते कहाँ खो जाती है? सुबह बच्चे को स्कूल छोड़ते वक्त का वह मासूम सवाल कि पापा, आज शाम खेलोगे? शाम को आपके चेहरे पर थकान और चिड़चिड़ाहट के साथ दफ्तर से लौटने पर, उसी सवाल का जवाब बन जाता है।
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यह कोई आपकी नहीं, आज के हर दूसरे कामकाजी की कहानी है। ऑफ़िस की वह बॉस की डांट, प्रोजेक्ट की वह डेडलाइन, कलीग की वह चालबाजी या फिर कुर्सी पर बैठे-बैठे घंटों खालीपन… ये सब सिर्फ एक फाइल या रिपोर्ट तक सीमित नहीं रहते। ये अदृश्य बैग बनकर आपके साथ घर पहुँच जाते हैं।
इसके साथ ही फिर शुरू होता है असली खेल। डेलॉइट की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 80% लोग वर्कफोर्स तनाव से जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार है, जो सीधे परिवारिक रिश्तों को कमजोर करता है।
लंबे कार्य घंटों से वैवाहिक तनाव और बच्चों से भावनात्मक दूरियां बढ़ती है
शारीरिक थकान तो होती ही है पर मानसिक थकान घर पर मौजूद लोगों से कनेक्ट होने की ताक़त छीन लेती है। वॉयडानोफ ने 2004 में जर्नल ऑफ़ मैरिज एंड फॅमिली में “कार्य की माँगों और संसाधनों का कार्य–परिवार संघर्ष पर प्रभाव” पर अध्यन किया जिसमें पाया की लंबे कार्य घंटे और लगातार दबाव से वैवाहिक तनाव, बच्चों से भावनात्मक दूरी बढ़ती है।
पत्नी का दिन भर का अनुभव सुनने का धैर्य नहीं रहता, बच्चे की बातें शोर लगने लगती हैं। आप शारीरिक रूप से घर पर होते हैं, पर मन अभी भी उसी ऑफ़िस की कुर्सी पर अटका होता है। ग्रीनहाउस और ब्यूटेल ने 1985 में अकादमी ऑफ़ मैनेजमेंट रिव्यु पत्रिका में “कार्य और परिवार की भूमिकाओं के बीच टकराव के स्रोत”विषय पर स्टडी की जिसमें पाया की ऑफिस की मानसिक थकान घर के पारिवारिक रिश्तों में झलकने लगती है। कार्यस्थल का तनाव कार्य–परिवार संघर्ष को जन्म देता है।
कार्यस्थल का तनाव पारिवारिक रिश्तों में पैदा करता तनाव
बॉस के सामने दबी हुई आवाज़, अनसुनी बातें, गुस्सा… यह सब एक दबाव कुकर की तरह होता है। घर वह सुरक्षित स्पेस होता है जहाँ इस कुकर का ढक्कन खुलता है। बिना वजह की चिल्लपों, छोटी-छोटी बातों पर तड़प उठना, ये सब अक्सर उसी दबाव का रिसाव होते हैं, जिसका शिकार होती है आपकी फ़ैमिली।
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रिसर्च दिखाता है कि कार्यस्थल के तनाव से वर्क-फैमिली कॉन्फ्लिक्ट बढ़ता है, जो रिश्तों में तनाव पैदा करता है। टैमी डी. एलन एवं सहयोगी ने वर्ष 2000 में जर्नल ऑफ़ ऑक्यूपेशनल हेल्थ साइकोलॉजी में “कार्य से परिवार पर पड़ने वाले संघर्ष के परिणाम”विषय पर अध्ययन किया जिसमें पाया की कार्य – परिवार संघर्ष के कारण चिड़चिड़ापन, गुस्सा, पारिवारिक असंतोष बढ़ता है।
घर सुरक्षित जगह, कोई ऑफिस का डंपिंग ग्राउंड नहीं…
वर्क फ्रॉम होम ने तो दीवारें ही गिरा दीं। अब ऑफ़िस सीधा डाइनिंग टेबल या बेडरूम तक पहुँच गया है। बच्चा चाहता है ध्यान लेकिन स्क्रीन पर बॉस की मैसेज आ गया है। पारिवारिक समय और कार्य समय के बीच की लकीर मिट गई है। ऑफ़िस का तनाव घर का माहौल बदल देता है।
वह हल्की-फुल्की हंसी, मजाक, बेवजह की गपशप ग़ायब हो जाती है। यूनेस्को–अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन संयुक्त शोध रिपोर्ट, यूनेस्को ने 2019 में “कार्यस्थल तनाव और मानसिक स्वास्थ्य” पर प्रस्तुत की जिसमें पाया कि भारत जैसे देशों में कार्यस्थल का तनाव मानसिक बीमारी, पारिवारिक अस्थिरता को बढ़ाता है। मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी पारिवारिक रिश्तों को कमजोर बनाती है।
घर एक ऐसी जगह बन जाता है जहाँ सिर्फ़ सीरियसनेस और चिंता का वातावरण रहता है। बच्चे समझने लगते हैं कि पापा आते ही सब चुप हो जाएं। एक अध्ययन में पाया गया कि जब माता-पिता वर्क-लाइफ बैलेंस नहीं रख पाते, तो बच्चों पर इसका गहरा असर पड़ता है, भावनात्मक दूरी बढ़ती है।
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निमहांस मानसिक स्वास्थ्य शोध रिपोर्ट 2021 जिसका शीर्षक “भारत में कार्यस्थल तनाव और मानसिक स्वास्थ” जारी की जिसका निष्कर्ष था भारतीय कर्मचारियों में तनाव के कारण गुस्सा, नींद की कमी, घरेलू तनाव बढ़ता है।
समाधान- ऑफिस के बोझ को घर में ने एंट्री दे
अब समस्या है तो यकीनन समाधान भी होगा.. सबसे पहली चीज ऑफिस के बोझ को घर की दहलीज पर छोड़ कर आएं। घर के दरवाज़े पर एक काल्पनिक स्ट्रेस डंपिंग जोन बनाएं।
दरवाजे की कुंडी खोलने से पहले, तीन गहरी सांस लें। यह सोचें कि आप अपनी सारी ऑफ़िस की परेशानियां, वहां की बहसें, वह फ़्रस्ट्रेशन, इसी दहलीज पर उतार रहे हैं। फिर अंदर कदम रखें। यह एक छोटा सा रिफ्रेश बटन दबाने जैसा है।
घर में एंट्री करते ही ऑफिस की कोई बात न उठाएं
ऑफ़िस और घर के बीच एक छोटी आदत बनाएं। गाड़ी में घर जाते वक्त कोई पसंदीदा गाना सुनें, पार्क में पाँच मिनट बैठकर चाय पीएं या घर आकर सीधे नहा लें। यह 15-20 मिनट का समय आपके दिमाग को सिग्नल देगा कि अब सीन बदल रहा है।
साथ ही घर में घुसते ही सबसे पहले मोबाइल चेक करने के बजाय, परिवार के किसी सदस्य की आंखों में देखकर हल्की सी मुस्कान के साथ हैलो बोलें। पहले पांच मिनट ऑफ़िस की कोई बात न उठाएं।
अपने जीवनसाथी या करीबी दोस्त से बात करें
ऑफिस का गुस्सा या निराशा दबाना नहीं, उसे सही तरीके से वेंट या निकलना ज़रूरी है। अपने जीवनसाथी या किसी करीबी दोस्त से बात करें लेकिन सिर्फ़ शिकायत नहीं। कहें, आज ऑफ़िस में यह हुआ, मुझे बहुत बुरा लग रहा है। बस तुमसे बता दिया, अब छोड़ते हैं। बस इतना कह देने से ही बोझ हल्का हो जाता है।
वीकेंड पर बाहर घूमने का प्लान बनाएं
वीकेंड को सिर्फ सोने और घर के कामों तक सीमित न रखें। एक छोटी सी पारिवारिक गतिविधि ज़रूर रखें..बच्चों के साथ बोर्ड गेम, सबका साथ बैठकर फिल्म देखना या बस एक साथ बगीचे में चाय पीना। हमेशा एक बात ध्यान रखें कि आप इंसान है सुपरहीरो नहीं, यह स्वीकार करना कोई कमजोरी नहीं है कि आप सब कुछ संभाल नहीं सकते।
कभी-कभी परिवार से ही कह देना कि आज दिन बहुत खराब गया है, थोड़ा आराम चाहिए.. उन्हें आपके करीब लाता है। वे समस्या का हिस्सा नहीं, समाधान का हिस्सा बन जाते हैं।
याद रखिए- ऑफिस आपको सैलरी देता है, पहचान नहीं…
याद रखिए, ऑफ़िस आपकी आजीविका का स्रोत है, जीवन का नहीं। जब हमारे प्रियजनों की कीमत पर ऑफिस का बिल चुकाने लगें तो समझ लेना चाहिए, तराजू का पलड़ा गड़बड़ा गया है। ऑफिस आपको सैलरी देता है, पहचान नहीं। और पहचान… वह तो आपके बच्चे की मुस्कुराहट में, आपके जीवनसाथी की संगत में बसी है। उसे ऑफिस के कागजों के नीचे दबने न दें।
निष्कर्ष- आज के समय में ऑफिस का तनाव हमारे रिश्तों पर वार कर रहा है। इससे हमें बचन की काफी आवश्यकता है। इस लेख से आप जानेंगे कि किस प्रकार आप वर्क लाइफ और अपने रिश्तों को बैलेंस कर सकते हैं। इस लेख के लेखक डॉ. जयपाल मेहरा है जो खेल विश्वविद्यालय, राई, सोनीपत में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर अपनी भूमिका दे रहे हैं।

