अक्सर जब भी किसी कैदी को पैरोल या फारलो ( Parole aur Furlough) दी जाती है तो लोगों के मन में अक्सर सवाल उठता है कि आखिर Parole aur Furlough Mein Kya antar hai क्या पैरोल या फरलो एक है या फिर दोनों अलग- अलग है।
आज हम इसी विषय पर बात करने जा रहे हैं और जानेंगे कि आखिर पैरोल और फरलो में क्या अंतर है ( difference between parole and furlough in hindi) और यह कितने- कितने दिन की होती है। कौनसा कैदी इसके लिए योग्य होता है।
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कैदी इसके लिए साल या फिर महीने में कितनी बार अप्लाई कर सकता है। किस कैदी को यह दी जाती है। पैरोल या फरलो को देने का अधिकार किस अधिकारी के पास होता है। अक्सर आपने देखा भी होगा कि कई बार किसी व्यक्ति को छोटे-छोटे अपराध में भी जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है दूसरी तरफ बड़े से बड़ा कैदी Parole or Furlough लेकर बाहर घूमता रहता है। क्या देश का कानून सभी पर एक जैसा ही लागू होता है।
पैरोल एक प्रकार से कैदी को उसके जेल में सजा काटने के दौरान व्यवहार पर दी जाती है। जब कैदी कुछ सजा जेल में काट चुका होता है तो उसके आचरण के आधार पर उसे पैरोल दी जाती है। खासकर जिनकी सजा के खिलाफ अपील बरकरार रहती है।
अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि एक कैदी को पैरोल कैसी मिलती है। पैरोल को राज्य सरकार द्वारा मंजूरी दी जाती है। जिसके बाद कैदी को पैरोल मिलती है। वहीं दूसरी तरफ फरलो जेल के उप महानिरीक्षक द्वारा दी जाती है।
क्या आपको मालूम है कि पैरोल मिलने पर भी कैदी को बाहरी समाज में भी अच्छा आचरण करना पड़ता है। यदि कैदी का बाहर आचरण खराब है या फिर शांति भंग करने में कैदी का रोल हो तो उसकी स्थायी रूप से पैरोल निरस्त कर दी जाती है। यदि इस दौरान कैदी पैरोल समाप्त होने के बाद वापस समर्पण नहीं करता है तो उसकी गिरफ्तारी के वारंट निकलते हैं और दो साल तक पैरोल भी नहीं मिलती है।
पैरोल एक बार में कैदी को इतने दिनों की मिलती है
जब कोई कैदी पैरोल के लिए अप्लाई करता है तो उसको एक बार में 15 या 20 दिनों तक की छुट्टी मिलती है जबकि यदि हम साल की बात करें तो एक साल में एक महीने से ज्यादा की पैरोल नहीं दी जाती है। धीरे-धीरे यह पैरोल अवधि बढ़ती जाती है। अगले साल 30 दिन हो जाती है। फिर आगे चलकर 40 दिन की पैरोल हो जाती है। इससे ज्यादा की पैरोल नहीं मिलती है। इसके अलावा फारलो कैदी साल में तीन बार ले सकता है। इसको देना या ना देना राज्य सरकार को निर्णय लेना पड़ता है।
पैरोल लेने के लिए मुख्य शर्ते
उस कैदी को पैरोल दी जाती है जिसने सजा का एक हिस्सा पूरा कर लिया है। साथ ही उसका जेल के अंदर कैसा आचरण है और यदि कैदी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, कैदी के घर में कोई अनहोनी हो जाए या किसी पारिवारिक सदस्य की शादी हो तो भी कैदी को पैरोल दी जाती है। इसका मुख्य मकसद कैदी में सुधार लाना होता है।
इन लोगों को नहीं दी जाती पैरोल
अक्सर पैरोल जेल अधिकारी द्वारा मंजूर की जाती है। वैसे तो हर कैदी का पैरोल लेने का अधिकार है लेकिन कई मामलों में कैदी की पैरोल नहीं दी जाती है या फिर कहे उसकी अपील को रद्द कर दिया जाता है। मौत की सजा पाए दोषी, आंतकवादी के दोषी और यदि प्रशासन को यह लगता है कि कैदी पैरोल के दौरान भाग सकता है, तो ऐसी स्थिति में कैदी को पैरोल नहीं दी जाती है।